मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद और शहाबुद्दीन की तिकड़ी, कभी यूपी-बिहार में था खौफ, मगर फिर…

नई दिल्ली. ‘बाहुबली’ मुख्तार अंसारी की मौत के साथ ही माफिया सरगनाओं की उस तिकड़ी का अंत हो गया, जिनको एक वक्त में उत्तर प्रदेश और बिहार में खौफ का दूसरा नाम माना जाता था. मुख्तार अंसरी और अतीक अहमद की एक साल के भीतर मौत हुई, जबकि मोहम्मद शहाबुद्दीन ने महज 53 साल की उम्र में 1 मई 2021 को दिल्ली के दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में कोरोना संक्रमण से दम तोड़ दिया था. बताया जा रहा है कि 63 साल के मुख्तार अंसारी की मौत कॉर्डिएक अरेस्ट की वजह से हुई है. वहीं अतीक अहमद की प्रयागराज के मेडिकल कॉलेज में पुलिस हिरासत में बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी. उस वक्त उसकी उम्र करीब 60 साल थी.

इस तरह देखा जाए तो यूपी और बिहार में आतंक मचाने वाली इस तिकड़ी का अंजाम कमोबेश एक जैसा ही हुआ है. इन तीनों माफिया सरगनाओं की मौत विवादास्पद हालातों में अस्पताल परिसरों में ही हुई. जहां एक ओर कत्ल और खूनखराबा को खेल समझने वाले मुख्तार अंसारी और मोहम्मद शहाबुद्दीन ने बीमारी के कारण दम तोड़ा तो वहीं अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की गोली मारकर हत्या कर दी गई. एक तरह से यह उत्तर प्रदेश और बिहार में बड़े डॉन या ‘बाहुबलियों’ के एक युग का अंत है.

अपराध जगह को निजी जागीर तक चलाया
बहरहाल दर्जनों लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले मुख्तार अंसारी के परिवार का आरोप है कि उन्हें जेल के अंदर ‘धीमा जहर’ देकर मार डाला गया. जबकि दशकों तक राजनीतिक संरक्षण के तहत अतीक अहमद, मुख्तारी अंसारी और शहाबुद्दीन ने उत्तर प्रदेश से बिहार तक अपराध जगह को अपनी निजी जागीर तक चलाया और उन पर बड़ी हत्याओं का आरोप लगाया गया. पूरा राज्य उन्हें माफिया के रूप में जानता था, जो जमीन पर कब्जा करते थे, भाड़े पर हत्याएं करते थे, अपहरण और जबरन वसूली उनके गुर्गों से जुड़ा एक कुटीर उद्योग था.

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ऐसे हुई दुर्दिन की शुरुआत
एक तरफ जहां उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने अतीत में राजनीतिक लाभ के लिए अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी पर भरोसा किया, वहीं बिहार में यही काम राष्ट्रीय जनता दल ने शहाबुद्दीन के लिए किया. मगर गाजीपुर में बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय और प्रयागराज में बसपा के विधायक राजू पाल की जिस तरह सरेआम दिनदहाड़े अंधाधुंध फायरिंग करके हत्या की गई, उसके बाद अतीक और मुख्तार का राजनीतिक संरक्षण करीब-करीब खत्म हो गया. इन दोनों के दुर्दिन की शुरुआत उसी वक्त से हो गई थी. मगर योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद ही इनके ताबूत में अंतिम कील ठोकी गई. वहीं शहाबुद्दीन ने नीतीश कुमार को परिस्थितियों का मुख्यमंत्री बताकर अपने लिए मुसीबत मोल ले ली. जिसके बाद उसे बिहार से तिहाड़ जेल भेज दिया गया और फिर वह जिंदा वापस नहीं लौट सका.

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